छत म मेहा बइठे रेहेव, तभेच दिमाक मोर ठनकिस।
तुरतेच दिमाक ह मोर तीर, एकठन सवाल ल पटकिस।।
कि बादर ह बरसे निहि, काबर ये हा ठड़े हवय।
कोनो सराप दे दे हवय, धून सिकला म जड़े हवय।।
कब गिरहि पानी कहि के, खेत म किसान खड़े हवय।
एति-ओति निहि ओखर आँखि, बादर म गड़े हवय।।
किसान मन ह बस ऐखरेच बर तरसत हवय।
कि काबर ये साल बादर नी बरसत हवय।।
ए साल किसान मन पानी ल सोरियावत हवय।
इहिच ल सोरिया के ऊखर मुँहू सुपसुपावत हवय।।
तरिया, नरवा, नहर, डबरी घलो सुखावत हवय।
पेड़ अऊ पऊधा के डारा-पाना पीऊरावत हवय।।
चिरई-चिरगुन ह घूमत हवय, पानी बर चारो कोति।
फेर मिलत नी हे पानी ह, ना ऐति, ना ओति।।
मऊसम के मारे ईहाँ, मनखे मन छटपटावत हवय।
गरमी हरय धून जड़कल्ला, समझ म नी आवत हवय।।
बादर ल पूछेव मेहा, हमर ईहाँ कब तुमन आहू?
होही कुछु तोर कन्डीसन, ता मोला बताहू।।
बादर ह किहिस मोला, तुमन कचरा झन बगराहू।
अऊ जम्मो डाहर ल सफ्फा राखके, पेड़ ल जगाहू।।
अतकिच मोर कन्डीसन हवय, इहिच ल करके देखाहु।
ताहन मेहा दौड़त-भागत, तुहरेच तिर म आहू।।
पुष्पराज साहू
छुरा (गरियाबंद)